इसे कहते हैं ५६ इंच की छाती
सच्चाई जरूर कड़वी होती है, मगर आज नहीं
तो कल लोगों को उसे स्वीकारना ही पड़ता है। बहुत दहाड़ते हैं फेकूजी। गुजरात के शेर। 56 इंच के सीने
वाले। गरजते हुए फेंकू शेर से कम लग रहे हैं क्या? ऐसा दहाड़ना, ऐसा गरजना की
अच्छे अच्छों की रूह कांप जाए। और क्यों न हो? कौन भूल सकता
वो दिन – जिसे आज मीडिया की धुआंदार बमबारी भुला देने पर अमादा है।
अंग्रेजी में एक शब्द है इस तरह की बमबारी के लिए – carpet bombing, यानि कालीन कि
माफ़िक बम से ज़मीन को ढक देना। पिछले कुछ वक़्त से हमारी इन्द्रियों पर जो
हमला हो रहा, कुछ इसी किस्म का है। मगर वो लाख चाहे कि इन महाशय की सारी
करतूतें भुला दी जाएँ, ऐसा कैसे हो सकता है? जब जब यह शक्ल
सामने आती है तब तब नाखूनों में खून दिखाई दे जाता है। वैसे भूलने भुलाने वाले भी
अजीब मिट्टी के बने होते हैं। अब देखिये न जी, हिन्दुओं से
कहते हैं की चार सौ साल पुरानी मस्जिद भी मत भूलना – बाबर का बदला
लेना है और मुसलमानों से कहते हैं इतनी पुरानी बात – 2002 का रोना अब भी
रोये जा रहे हो? इसे कहते हैं “चित भी मेरी, पट भी मेरी – और अंटा मेरे
बाप का”।
यह अकारण नहीं
कि उन्हें सरे लोग 'फेंकू' नाम से सम्बोधित करने लगे है। पर मज़े की बात
तो यह है कि जैसे की यह शेर अकेले में धर लिया जाता है – जहाँ खुले
मैदान में दहाड़ना क़ाफ़ी नहीं, जहाँ सवाल का जवाब देना ही होता है, जहाँ चालाकी
से किसी को भी “पाकिस्तानी एजेंट” वगैरह कहा
नहीं जा सकता है – वहीँ फेकूराम बगलें झाँकने लगते हैं। घूँट भरते हैं, पानी मांगते
हैं और फिर मौन व्रत। एक बार तो स्टूडियो से ही उठ कर चल दिए थे। अभी हाल में
हेलिकोप्टर में फँस ही गए तो चेहरा फीका पड़ गया।
इस आँख मिचौली
की ताज़ातरीन मिसाल यह है की मीडिया के पूरे समर्थन से पिछले दो एक बरस में गुजरात
के कथित ‘विकास’ के बारे में जो झूठ फैलाया जा रहा था वो जैसे ही पकड़
में आने लगा वैसे ही गुजरात सरकार ने वो आंकड़े अपनी वेबसईट से हटा लिए। नवभारत
टाइम्स की एक रपट के मुताबिक:
फेंकुजी ने अपनी रैलियों में गुजरात के विकास की खूब
मिसाल देते हैं। वे दावा करते हैं कि गुजरात में कृषि विकास दर 11 फीसदी जबकि
उनकी अपनी वेबसाइट के मुताबिक यह -1.18 फीसदी है।
आर.टी.आई के
ज़रिये इकठ्ठा की गए जानकारी पर आधारित उनकी एक रपट के मुताबिक सिर्फ 2003 से 2007 के बीच 489 किसानों ने
खुदकुशी की। असल संख्या जो पुलिस ने एन एह आर सी से जवाब मांगे जाने पर
दी वह 563 है। एक मोर्चा और खुल गया है फेकू के ख़िलाफ़। अभी आने वाला एक
महीना हर रोज़ नए गुल खिलायेगा। समझ ही सकते हैं मोदी की ख़ामोशी की वजह। मसला सिर्फ
2002
का
नहीं है। उनका हर मामला झूठ पर टिका है। किसी एक बात पर भी अगर फँस गए तो क्या
होगा? कैसे बनेंगे पी एम? उनके साथ साथ
और कितनों के उम्मीदें धरी की धरी रह जायेंगी, क्या पता…
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