Friday, April 18, 2014

ओ पत्नी-त्यागी जी, नो उल्लू बनाविंग...


44 साल बाद पति बना हूँ!

हाल में फेकुजी  को लेकर एक बड़ी घटना हुई हैं। जनाब साहब 44 साल बाद पति बने हैं। वाकये हैं तो चार दशक पुराने, लेकिन उनकी इस धर्मपरीक्षा का रिजल्ट घोषित ही नहीं होने पा रहा था। कारण- परीक्षार्थी ही नहीं चाहते थे कि रिजल्ट डिक्लेयर हो।सालोसाल दबाये रखने की कोशिशों और ढिठाई भरे इनकार के बावजूद जबर्दस्ती परिणामों की घोषणा कर दी गई। फेकुजी की अनमनी स्वीकारोक्ति किसी खुशी में नहीं बल्कि मजबूरी में हुई है। घोषणा रोकने के लिए फेकुजी ने अदालत और झांसों का सहारा भी लिया। हर संभव कोशिश की कि पति न बनें लेकिन संवैधानिक संस्थाओं ने साफ कर दिया, अब तक जो किया सो किया लेकिन, अब...नो उल्लू बनाविंग, नो उल्लू बनाविंग!! सोच कर माथा ठनकता है कैसे कोई अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पति जैसे पवित्र रिश्ते से इनकार कर सकता है। वाह रे मजबूरी और हाय रे मजबूरी।

ओ पत्नी-त्यागी जी, नो उल्लू बनाविंग...
फेकुजी कोई गौतम बुद्ध नहीं हैं जो पत्नी को त्यागकर सत्य की खोज में निकल पड़े हों। वह तो लक्ष्य राज गाड़ी हासिल करने चले हैं। एक ऐसा लक्ष्य जिसे पाने के लिए पार्टी सारी परंपराओं, आदर्शों और तहजीब की आहूति दे रही है तो इस पर भी चर्चा होना लाजिमी है। 44 साल पहले की घटना के सच से एक ऐसी आंधी आई जिसमें फेकुजी को झक मारकर अपनी शादी कबूलनी पड़ी है। 1968 में शादी करनेवाली 18 साल की युवती परित्यक्ता के रूप में आज 62 की वृद्धा हो चुकी है। शिक्षिका के रूप में टीन की छतवाले, छोटे-से कमरे में भाइयों के सहारे जिंदगी बिता देनेवाली जसोदाबेन अब रिटायर हो चुकी हैं। खर्च का इंतजाम न होने के कारण मोतियाबिंद के ऑपरेशन का इंतजार कर रही हैं। परित्यक्ता का ठप्पा किसी भी भारतीय महिला का सबसे बड़ा अपमान है। एक ऐसा अपमान जिसे वह तिल-तिल झेलती और मरती रहती है, हर दिन, हर पल। उनकी तकलीफ इस बात से और बढ़ जाती है कि उन्हें दुनिया के सामने यह कहने का अधिकार भी नहीं कि वे नरेंद्र मोदी की पत्नी हैं।

जसोदाजी
कुछ समय पहले एक चैनल पर बहस चल रही थी कि मोदी को कैसे आदर्श माना जाए जिन्होंने 44 वर्षों तक अपनी पत्नी का सम्मान ही नहीं किया, उसे वैधानिक दर्जा नहीं दिया और आज हलफनामा दायर कर रहे हैं कि उनकी पत्नी है। एक वोट बैंक के रूप में भी महिलाओं की हैसियत कितनी दयनीय है कि एक पत्नी-त्यागी को पूरे धड़ल्ले से पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया है। धन्य हैं वे महिलाएं जो पति के कहने पर सिर झुकाकर उसी पत्नी-पीड़क को वोट दे देंगी। मोदी की स्वीकारोक्ति तकनीकी है। जसोदाजी का निर्वासन खत्म नहीं हुआ है। वैसे फेकू भक्तों ने अपने आका के बचाव में एक नया टर्म इजाद किया है कि यह 'तकनीकी' शादी है।

जो इन्सान अपनी पत्नी को सच नहीं हो सकता है जो अपने देश के लिए सच नहीं हो सकता! अब अपनी पसंद करें क्या प्रधानमंत्री पद के उम्मेदवार ने अपनी ही जनता को धोखे में रखा ऐसी पार्टी को सात्ता देना देश के हित में हें!

Tuesday, April 15, 2014

‘टॉफी मॉडल’

  गुजरात मॉडल नहीं टॉफी मॉडल



गुजरात मॉडल के बारे में मैं आपको बताना चाहती हूं। में राहुलजी की बात से सहमत हु इस मॉडल को फेकुजी ने वीक्ष्य हें गुजरात राज्य में सिर्फ एक ही उद्योगपति को फायदा हुआ है जबकि गरीबों व किसानों के हितों को नजरअंदाज किया गया है। औरंगाबाद के आकार की भूमि़ 45000 एक़ड महज 300 करोड रूपये में दे दी गई। यह टॉफी मॉडल है, गुजरात मॉडल नहीं। एक रूपये में आपको यहां टॉफी मिलती है। उनकी जमीन को एक रूपये प्रति मीटर के दाम पर बेच दिया गया। यह गरीबों और किसानों की जमीन थी।

अदानी को 1 रूपये प्रति मीटर में जमीन
वह बार बार अपनी रेलियो में कहते हें में ने विकास किया हे! और फेकू अपने आपको विकास पुरुष कहेता हे। गुजरात का इतना विकास किया गया है की गुजरात में अदानी को 1 रूपये प्रति मीटर में जमीन दी जाती है। इतने पैसे में आप लोग टॉफी खरीदते हैं। ये टॉफी मॉडल है टाटा को 20 साल के लिए 1 प्रतिशत पर ब्याज दिया जाता है जबकि किसानों को 12 प्रतिशत पर ब्याज दिया जाता है।

गुजरात के अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के लिए इसके बड़े आधार को वजह बताते हैं। वित्त वर्ष 2013 में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले राज्यों मसलन महाराष्ट्र, तमिलनाडु,उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के बाद गुजरात पांचवें स्थान पर था। फेकुजी गुजरात मॉडल को नं-1 बता रहे है पर हकीकत को कुछ और ही है। उसने गुजरात मॉडल को दहशत का मॉडल बना दिया है। नरेंद्र मोदी के पक्ष में सतही प्रचार करने की जगह इस पहेली को सुलझाना दरअसल दिमाग के लिए कहीं ज़्यादा उपयोगी साबित होगा।

विकास के गुजरात मॉडल की बात करने से काम नहीं चलेगा। लोगों को दर्द समझना होगा। जिसे वे नहीं समझते, न समझना चाहते हैं। और न समझेंगे... वे केवल फेकने में ही अपना विकास समजते हें !

Tuesday, April 8, 2014

भाजपा का 'फेंकूफेस्टो


भाजपा का 'फेंकूफेस्टो

आम जनता मीडिया नियंत्रित नहीं है यदि हें तो 10 साल पहले यानी की 2004 का इतिहास देखा जाये तो भाजपा ने आडवाणी जी को केवल पीएम-इन-वेटिंग घोषित किया था, मगर मीडिया ने उन्हें सीधे पीएम ही बना दिया था कई साल पहले भाजपा ने " इंडिया शाइनिंग " का नारा दीया था तब जनता जानती थी की क्या सही हें और क्या गलत इसबार भी वाही होने वाला हें! पिछले कई महीनों से मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में फेकूजी छाये हुये हैं. मीडिया देश के मतदाता का भाग्यविधाता होता, तो अरबों रुपये के चुनावी झमेले में पड़ने की आवश्यकता ही नहीं थी, फेकूजी सीधे प्रधानमंत्री बन जाते और मीडिया हाउस उनके मरजी से चलता, पर सौभाग्यवश ऐसा नहीं है !

फेकूजी को सिर्फ फेकने में आगे हे विकाश में नहीं मोदी लोगोको विकाश का मुखोटा पहनाते हे ! फेकुजी मीडिया में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है ! फेकूजी के आसानी से देश में सबकुछ ठीक होजायेगा लेकिन भारत की जनता फेकने वालोको पहचान गई हें ! झूठ वादे झूथे प्रचार करके देश कभी आगे नहीं आने वाला क्या भारत को ऐसे फेकू मॉडल की जरुरत हे जो सिर्फ बड़ी बड़ी बाते करना ही जनता हें !

उसमें 26 मार्च की तारीख
सोमवार को भाजपा के बहुप्रतीक्षित घोषणा पत्र जारी किया की गांवों में इंटरनेट सुविधाओं, स्वास्थ्य, सबको मकान, शिक्षा, आर्थिक सुधार और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर उसके घोषणा पत्र की नकल का आरोप लगाया है। किसीने सच ही कहा हे नकल में भी अकल होनी चाहिए ! कांग्रेस घोषणा पत्र की तारीख तक नहीं बदली। भाजपा के घोषणा पत्र में मुरली मनोहर जोशी ने जो प्रस्तावना लिखी है उसमें 26 मार्च की तारीख है। कांग्रेस का घोषणा पत्र इसी दिन जारी हुआ था। उन्होंने कहा, भाजपा ने हर गांव को इंटरनेट से जोड़ने और हर राज्य में एम्स बनाने की बात कही है। जबकि, संप्रग सरकार इन पर काम भी शुरू कर चुकी है। और फेकूजी कहते हे की हम इस देश को विकास की गति में नई ऊचाईओ को छुएंगे ! फेकू झूठे वादे को साथ लेकर लोगो को गुमराह करके अब वह राष्ट्र प्रमुख के बारे में सपना देख रही है. 

अब आप इसके बारे में सोचो क्या फेकू का झूठी बाते, झूठा विकाश, झूठा प्रचार, आखिर झूठ अब नहीं चलने वाला क्यों की अब भारतकी जनता जानती हें की फेकूगिरी अब नहीं चलेगी !