44 साल
बाद पति बना हूँ!
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हाल में फेकुजी को लेकर एक बड़ी घटना हुई हैं। जनाब साहब 44 साल
बाद पति बने हैं। वाकये हैं तो चार दशक पुराने, लेकिन उनकी इस धर्मपरीक्षा का रिजल्ट घोषित ही
नहीं होने पा रहा था। कारण- ‘परीक्षार्थी ही नहीं चाहते थे कि रिजल्ट
डिक्लेयर हो।’ सालोसाल
दबाये रखने की कोशिशों और ढिठाई भरे इनकार के बावजूद जबर्दस्ती परिणामों की घोषणा
कर दी गई। फेकुजी की अनमनी स्वीकारोक्ति किसी खुशी में नहीं बल्कि मजबूरी में हुई
है। घोषणा रोकने के लिए फेकुजी ने अदालत और झांसों का सहारा भी लिया। हर संभव
कोशिश की कि पति न बनें लेकिन संवैधानिक संस्थाओं ने साफ कर दिया, अब
तक जो किया सो किया लेकिन, अब...नो उल्लू बनाविंग, नो
उल्लू बनाविंग!! सोच कर माथा ठनकता है कैसे कोई अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की
पूर्ति के लिए पति जैसे पवित्र रिश्ते से इनकार कर सकता है। वाह रे मजबूरी और हाय
रे मजबूरी।
ओ पत्नी-त्यागी जी, नो उल्लू बनाविंग... |
फेकुजी
कोई गौतम बुद्ध नहीं हैं जो पत्नी को त्यागकर सत्य की खोज में निकल पड़े हों। वह
तो ‘लक्ष्य
राज गाड़ी ’ हासिल
करने चले हैं। एक ऐसा लक्ष्य जिसे पाने के लिए पार्टी सारी परंपराओं, आदर्शों
और तहजीब की आहूति दे रही है तो इस पर भी चर्चा होना लाजिमी है। 44 साल
पहले की घटना के सच से एक ऐसी आंधी आई जिसमें फेकुजी को झक मारकर अपनी शादी कबूलनी
पड़ी है। 1968 में शादी करनेवाली 18 साल की युवती परित्यक्ता के रूप में आज 62 की
वृद्धा हो चुकी है। शिक्षिका के रूप में टीन की छतवाले,
छोटे-से कमरे में भाइयों के सहारे जिंदगी बिता देनेवाली जसोदाबेन अब रिटायर हो
चुकी हैं। खर्च का इंतजाम न होने के कारण मोतियाबिंद के ऑपरेशन का इंतजार कर रही
हैं। परित्यक्ता का ठप्पा किसी भी भारतीय महिला का सबसे बड़ा अपमान है। एक ऐसा
अपमान जिसे वह तिल-तिल झेलती और मरती रहती है, हर दिन, हर पल। उनकी तकलीफ इस बात से और बढ़ जाती है कि
उन्हें दुनिया के सामने यह कहने का अधिकार भी नहीं कि वे नरेंद्र मोदी की पत्नी
हैं।
जसोदाजी |
कुछ
समय पहले एक चैनल पर बहस चल रही थी कि मोदी को कैसे आदर्श माना जाए जिन्होंने 44
वर्षों तक अपनी पत्नी का सम्मान ही नहीं किया, उसे वैधानिक दर्जा नहीं दिया और आज हलफनामा
दायर कर रहे हैं कि उनकी पत्नी है। एक वोट बैंक के रूप में भी महिलाओं की हैसियत
कितनी दयनीय है कि एक पत्नी-त्यागी को पूरे धड़ल्ले से पीएम पद का उम्मीदवार बनाया
गया है। धन्य हैं वे महिलाएं जो पति के कहने पर सिर झुकाकर उसी पत्नी-पीड़क को वोट
दे देंगी। मोदी की स्वीकारोक्ति तकनीकी है। जसोदाजी का निर्वासन खत्म नहीं हुआ है।
वैसे फेकू भक्तों ने अपने आका के बचाव में एक नया टर्म इजाद किया है कि यह 'तकनीकी' शादी
है।
जो इन्सान अपनी पत्नी को सच
नहीं हो सकता है जो अपने देश के लिए सच नहीं हो सकता! अब अपनी पसंद करें क्या प्रधानमंत्री पद के उम्मेदवार ने अपनी ही जनता को धोखे में
रखा ऐसी पार्टी को सात्ता देना देश के हित में हें!